Comments From Contemparies...I

 

पं . निवृत्ती बुवा सरनाईक शास्त्रीय संगीताचे विद्वान होते. निवृत्ती बुवा हे शंकरराव सरनाईक यांचे पुतणे.
कोल्हापुरात माझे वास्तव्य असताना मी शंकररावांकडे गाणे शिकत असे त्यामुळे निवृत्तीबुवा मला जवळचे वाटतात.
त्यांच्या स्मृतीस माझा आदरपूर्वक प्रणाम

- भारतरत्न श्रीमती लता मंगेशकर

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मेरी मुलाकात श्री. निवृतीबुवाजीसे १९६० से हुआ करती थी, शिवाजी पार्क मै रहा करता था I
वो आया करते थे, हम दो दो घंटे बैठके संगीत की बाते करते थे I
लोगोंसे सुना था निवृतीबुवासाहेब बडे विद्वान थे I
जब हमारी मुलाकाते होने लगी तो मैने पाया की वाकयी मैं तो वो बहोत बडे प्रकांड पंडीत है I

करीब ५० साल पुरानी बात है, मुझे थोडी Confusion थी, एक राग देवसाख के बारेमे I
जब मैंने गाके सुनाया और पुछा की बुवा ये क्या है, तो उन्होंने कहा की ये तो देवसाख है I
फिर उसके बाद हम मिलते रहें, मुझे वो बहोत प्यार करते थे, मेरे संगीत को प्यार करते थे,
और उनका मुझपे बहोत आशीर्वाद रहा है I

- पं. जसराज

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पं. निवृत्तीबुवाजी बहोतही उँचे दर्जे के कलाकार थे I
आज शास्त्रीय संगीत की दुनियामे जिनकी कमियाँ महसूस होती है,
उनमे निवृत्तीबुवाजी का नाम बहोत आगे हैं I

- पं. रामनारायण

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पं. निवृत्तीबुवाजी बहोत बडे कलाकार थे, उनका वास्तव्य कलकत्ता के संगीत रिसर्च अकादमी रहा,
उस दरम्यान हम सबको उनका स्नेह मिला,
मुझे तो उन्होंने अपनी छोटी बहन की तरह माना I

- श्रीमती गिरिजादेवी

 

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पं.निवृत्ती बुवांच्या अनेक आठवणी मनात दाटुन येतात.
जयपूर घराण्याच्या या थोर गायकाच्या स्मृतीस माझा प्रणाम

- किशोरी अमोणकर

 

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Pt.Nivruttibuva was very great as a guru and as a vocalist. He had a very large collection of many good bandishes and he rendered these bandishes very cleverly.

- Pt.Jitendra Abhisheki

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    माझ्या सांगीतिक आयुष्यात ज्या काही गुरुसमान व्यक्ती आल्या
    त्यात निवृत्ती बुवांचे नाव आवर्जुन घ्याव लागेल.
    १९७० मध्ये मी गांधर्व महाविद्यालयाच्या प्रवीण परीक्षेला बसायचं ठरवलं
    या परीक्षे साठी प्रबंध लिहिण्याबरोबरच काही अनवट रागांचा अभ्यासही आवश्यक होता.

    या अभ्यासाच्या निमित्ताने एक व्यक्ती म्हणूनही बुवांचा जवळून परिचय झाला.
    साधी रहाणी , अतिशय नम्र स्वभाव , आपल्या विद्वत्तेचा वृथा अभिमान नाही.
    अशा अनेक गोष्टी त्यांच्या कडून शिकण्यासारख्या होत्या.

    घराण्याच्या चौकटीत राहूनही बुवांनी आपलं वेगळेपण राखलं होतं.
    त्यांच्या गाण्यात 'विचार' होता. दुसऱ्या घराण्यांबद्दल आदर होता.
    समोरच्या माणसाला योग्य तो मान देऊन त्यांच्या गाण्याचं कौतुक करणं,
    होईल ती मदत करणं, हा बुवांचा स्वभाव होता.
    अशी माणसं आता कुठे आहेत ?

    - डॉ.प्रभा अत्रे

     

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    पं. निवृतीबुवा सरनाईक यांच्या अनेक वर्षांच्या सहवासातून मला जे शिकायला मिळाले.
    त्याने माझ्यातल्या कलाकाराचा विकास होण्यास खूप मदत झाली.
    कला ही कलाकारापेक्षा मोठी असते, कलाकाराने आत्मनिरीक्षण करावे,
    घराण्याच्या बाहेर बघावे, दुसऱ्या कलाकाराचा मोठेपणा मान्य करावा
    आणि संगीत कशासाठी आहे याचा विचार करावा यासारख्या अनेक गोष्टी मनावर बिंबवल्या.
    त्यामुळेच निवृतीबुवा त्यांच्या समकालीन कलाकारांमध्ये विशेषत्वाने उठून दिसले.

    - पं.सुरेश तळवळकर

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    Pt.Nivruttibua was a born genius.his grasping power was amazing.While gaining knowledge, he never hesitated to cross the boundries of Jaipur Gharana, this resulted in the colorful music of Pt.Nivruttibua having vilambit khayals in Ektaal,Kirana styles of alaps, special patterns of taans, rendition of different ragas not usually sing in Jaipur gharana.

    - Pt.Sudhakarbua Digrajkar (Senior Disciple of Pt.Nivruttibua Sarnaik)

     

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    Though Pt.Nivruttibuva was a great artiste he was a very simple and free person. He treated all his disciples as his children and imparted his knowledge free handedly.

    - Pt.Vijaykumar Kichalu:- (Former director of Sangeet Research Academy, Kolkota)

     

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    माझे गुरु पं. गजाननबुवा जोशी आणि निवृतीबुवांचा घनिष्ट संबंध होता.
    दोघेही एकमेकांच्या कलेबद्दल आदर बाळगत असत.
    मला गजाननबुवांच्याकडे शिकत असताना पं. निवृतीबुवांच्या मैफिली ऐकण्याचा
    Iआणि त्यांच्या गायकीचा अभ्यास करण्याचा योग आला.
    जरी मी त्यांचेकडे तालीम घेऊ शकलो नाही तरी मला प्रभावित करणाऱ्या
    विद्वान कलाकारांमध्ये पं. निवृतीबुवा हे एक होते.

    त्यांच्या गायकीचा मूळ आधार जयपुर गायकी असला तरी
    त्यांनी आपल्या गायकीत किराना आणि उ. राजबअली खान यांच्या
    गायकीचे मिश्रण केले होते. तसेच 'तान' हा त्यांच्या गायकीचा उत्कर्ष बिंदू,
    बुवा उत्तम तबला शिकलेले असल्यामुळे त्या ज्ञानाचा उपयोग करून
    बलपेचयुक्त तन जी घेत असत, त्यामध्ये विविध लयींच्या विभागांच्या
    विभाजनामुळे जे लयींचे सौंदर्य बुवा पेश करत ते केवळ अवर्णनीय.

    त्यांनी अनेक दुर्मिळ रागात बंदिशी सुद्धा फार
    वेगळ्या वळणाच्या केल्या आहेत.
    ज्या अनेक कलाकारांकडून आपल्याला ऐकायला मिळतात.
    त्यांच्या स्मृतीला माझे विनम्र अभिवादन

    - पं. उल्हास कशाळकर

     

     

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    पं. निवृतीबुवा …. शिस्तप्रिय जयपुर गायकीचा चेहरा आपल्या असामान्य बुद्धीने
    बदलून टाकण्याचे सामर्थ्य असलेले …
    केवळ बंडखोरी न करता अनवट रागातील कलामूल्य देखील तितक्याच
    उत्कटतेने व लालित्यपूर्ण मांडणारे गुरूणाम गुरु गवयी

    - पं. दिनकर पणशीकर

     

     

     


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